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महाभारत काल में एकलव्य का किरदार अपनी गुरुभक्ति के लिए जाना जाता था। महान धनुर्धर होने के बावजूद, गुरु द्रोणाचार्य ने उससे उसका अंगूठा मांग लिया था। बहुत कम लोग ये जानते हैं कि एकलव्य का वध किसने किया था ? आइये, जानते हैं :
एकलव्य की प्रसिद्ध कहानी के बारे में अधिकांश लोग सिर्फ यह जानते हैं कि उन्होंने अपने मानस गुरू द्रोणाचार्य के मांगने पर गुरुदाक्षिणा में अपना अंगूठा काटकर दे दिया था। लेकिन एकलव्य के बाद क्या हुआ, कोई नहीं जानता? बहुत कम लोग जानते हैं कि श्रीकृष्ण व एकलव्य रिश्तेदार थे। हरिवंश पुराण कहता है कि शूरसेन के दस पुत्र और पांच पुत्रियों में श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव सबसे बड़े थे। शत्रुघ्न, वासुदेव के चौथे भाई, और एकलव्य उनके पुत्र थे। इस तरह जन्म से एकलव्य श्रीकृष्ण के चचेरे भाई थे।
महाभारत काल में प्रयाग में श्रृंगवेरपुर राज्य निषादराज हिरण्यधनु का था। हिरण्यधनु के मृत्यु के बाद एकलव्य वहां के राजा बने। एकलव्य के राजा बनने से पहले ही उनकी अंगूठे काटने वाली घटना हो चुकी थी। विष्णु पुराण और हरिवंश पुराण के अनुसार, एकलव्य अपनी विस्तारवादी सोच के चलते न केवल नकली श्रीकृष्ण व दुश्मन पौन्ड्रक का साथ दिया था, बल्कि जरासंध से भी जा मिला था। पौन्ड्रक का वध श्रीकृष्ण के द्वारा किया गया लेकिन फिर एकलव्य जरासंध के साथ मिलकर मथुरा पर आक्रमण करके यादव सेना का लगभग सफाया करने लगे। जब श्रीकृष्ण ने ये सुना और सेना में हाहाकार मचने लगी, तो श्रीकृष्ण स्वयं उससे लड़ाई करने पहुंचे। लेकिन वो युद्ध में एकलव्य को केवल चार अंगुलियों के सहारे धनुष-बाण चलाते हुए देखकर आश्चर्यचकित हो गए। उन्हें लगा नहीं था कि एकलव्य अब भी इतना धनुर्धर और दक्ष होगा। एकलव्य अकेले ही सैकड़ों यादव वंशी योद्धाओं को रोकने में सक्षम था। इसके बाद इसी युद्ध में कृष्ण ने एकलव्य का वध किया था। मथुरा के युद्ध में एकलव्य ने श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न पर आक्रमण किया था। तब श्रीकृष्ण ने उसे ललकारा और एक भारी शिला से उसका वध कर दिया।
महाभारत के द्रोण पर्व के 181 वें अध्याय के श्लोक 2 में श्रीकृष्ण कहते हैं – “अर्जुन! जरासंध, शिशुपाल और महाबली एकलव्य यदि ये पहले ही मारे ना गए होते, तो इस समय बड़े भयंकर सिद्ध होते। ये मिल कर यदि दुर्योधन का पक्ष लेते, तो पृथ्वी को अवश्य जीत लेते।