अपनी तलाश
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" बहुत दर्द होता है,जब आप स्वयं को खो दें........
ये अहसास एक ऐसे दर्द की अनुभूति करवाता है, कि व्यक्ति को जीवन शब्द से नफ़रत हो जाती है।।
हां नफ़रत,ठीक सुना।
मृत्यु क्या है? वास्तविक सच्च,जीवन भर व्यक्ति एक झूठी दुनिया की माया में लिप्त अपने तन और मन दोनों को कष्ट देता है,ये कष्ट उसने ख़ुद चुना है कयोंकि ईश्वर ने तो उसे केवल प्रसन्नता दी।
लालच वो तत्व है जो इस दर्द की वजह है।
लालच भी कई तरह की होती है -
पैसे की लालच,ओहदे की लालच, मुहब्बत की लालच।।
इनमे भी सबसे ज़्यादा जो लालच कष्ट पहुंचती है,वो है मुहब्बत।
मुहब्बत क्या है? क्या आप इसे कुछ शब्दों में बता सकते ?
मैं अपना ही अनुभव बताती हूं-
मुहब्बत अगर सही इंसान से हो तो,दुनिया खूबसूरत लगने लगती है,
लेकिन अगर ग़लत इंसान से हो , तो दुनिया ही में नरक का कष्ट भोग लेता है व्यक्ति।।
शुरु-शुरु में सब कुछ बहुत खूबसूरत लगता है,
किन्तु कुछ समय पश्चात् सब कुछ बदसूरत हो जाता है।।
आप जब तक किसी में ज़्यादा नहीं डूबते,तब तक ही सब हसीन लगता है,किन्तु जैसे जैसे आप किसी में इतने डूब जाए कि स्वयं को भूल जाए ये पीड़ादायक हो जाता है।
अब क्या बचा आपके हाथ में? कुछ नहीं दुनिया का सबसे कंगाल व्यक्ति है वो ,जो खुद को खो दे।
क्योंकि अपने आप को खो कर आपके पास कुछ नहीं बचता, आप अपने मस्तिष्क का नियंत्रण खो बैठते है,
फिर क्या ? जब आपका मस्तिष्क ही नियंत्रण खो बैठे ,तो आप कुछ भी करने में समर्थ नहीं रह जाते।
लोग कहेंगे आपसे कि अपना माइंड डायवर्ट करो, किन्तु क्या ये संभव हो पाता है। मुझसे तो नहीं हो पाया संभव.....
ये जो असंभव है ना,ये कष्ट को बढ़ाता है,
मेरे कष्ट का निवारण कौन करेगा,इस कष्ट का निवारण कोई नहीं कर सकता, क्योंकि कोई समझता ही नहीं मेरी मानसिक स्तिथि को।"
"मेरे जैसे बहुत से लोग इस पीड़ा को झेल रहें हैं , लोक लाज का भय इस पीड़ा को किसी से कहने कि अनुमति भी तो नहीं देता,क्या इस पीड़ा को झेलने वाले आपस में मिलकर इस पीड़ा को दूर करने हेतु कोई प्रयास नहीं कर सकते, काश कोई जादू की छड़ी मिल जाती जिसे घुमा कर सब दर्द दूर हो जाते ,या कोई जादुई चिराग जिससे कोई जिन निकले और मेरी इस विचलित मानसिक स्तिथि को दूर कर दे,किन्तु ये सब तो वास्तविक जीवन में संभव नहीं।।
इस कष्ट का निवारण केवल हम खुद ही कर सकते हैं,केवल अपनी तलाश करके,जिस दिन हम स्वयं को ढूंढ लेंगे हम फिर से जीवन जीना सीख जायेंगे।।"
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(फ़ • फ़ातिमा)