किन्नर: हमारे समाज के अभिन्न हिस्सा

हमारे समाज में एक ऐसा वर्ग है जो इस दुनिया में या इस दुनिया का नहीं समझा जाता है। जिन्हें हम किन्नर कहते हैं। लेकिन कहने मात्र से कुछ नहीं हो जाता यह हमारे समाज के अभिन्न अंग है इनकी देखरेख उनके बारे में सोचना राजनीतिक सामाजिक आर्थिक पहलुओं पर ध्यान देना हमारे समाज के ठेकेदार राजनीतिक कार्यकर्ता हमारी समाज के उच्च वर्ग के लोग एवं विभिन्न ऊंचे ओहदे पर बैठे लोगों को भी इन लोगों के बारे में ध्यान देने की आवश्यकता है। जैसे कि हम इन की पृष्ठभूमि पर ध्यान दे तो इनका इतिहास लगभग 4000 वर्ष पुराना है महाभारत और रामायण काल में भी इनका उल्लेख मिलता है। शिखंडी तो राजा था। देखा जाए तो सबसे ज्यादा ही नहीं मान सम्मान मुगल काल में मिला सबसे ज्यादा सोचने वाली बात यह है कि इन्हें सन 2014 में इन्हें हमारे सरकार के द्वारा मतदान करने का अधिकारी मिले, इनकी संख्या हमारे देश में 490000 लेकिन इतनी संख्या तो कम नहीं है। इन्हें तो हमारे समाज में इंसान का दर्जा तो दिया ही नहीं इन्हें हम मानव समझते ही नहीं है। इनके बारे में बहुत सारी कहानियां उपन्यास लिखे गए हैं मैं उन सब की बारे में चर्चा नहीं करूंगा क्योंकि चर्चा करने से फिर कुछ नहीं हो जाता इन्हें मुख्यधारा में जोड़ने की आवश्यकता है हां कहा जाता है कि मुख्यधारा में जोड़ने के लिए आवाज उठाने के लिए पत्र पत्रिका लेखन की आवश्यकता होती है, लेकिन हमें इसी में बैठकर किसानों की बात करें एसी में बैठ कर हम कहें कि धान की रोपनी गेहूं की बुवाई कैसे होती है यह सिर्फ सही है लेकिन यह बात सही नहीं है। इसीलिए इन्हें मुख्यधारा में जोड़ने की आवश्यकता है। कुछ ऐसे लिखा जाए या इनके बारे में सोच किया जाए जिससे कि इन लोगों के ऊपर में प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव पड़े हमारे समाज में प्रभाव पड़े ऐसा नहीं कि कहने मात्र से कुछ हो चुनाव के समय में या किसी राजनीतिक गठजोड़ के समय में इन सब को याद किया जाता है सिर्फ याद करने से कुछ नहीं होता इनके बारे में काम करना चाहिए कांति सोचना चाहिए जैसे आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक सभी पहलुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है इन्हें इंसान का दर्जा देना है हमारे समाज के कुछ वर्गों इन्हें देखना तक पसंद नहीं करते हैं। दिवेश चंद्रा