राज्य की अस्पष्ट नीतियों ने आज मधेस को पराया बना दिया : रोशन झा| लोकतान्त्रिक गन्तन्त्रात्मक मूल्क नेपाल मधेसीयों के लिए प्रतिद्वन्दि जैसा बनते जा रहा है । निर्दोष मधेसी जनता को नेपाली पुलिस गोलीयों से भूंद देता है लेकिन ऐसे पुलिस अधिकारीयों पर कहीं कोई कार्वाही नही होती, उल्टा उन्हे सम्मानित कर पद्दोन्नति किया जाता है । नेपाल में जीतने भी परिवर्तन हुए है, जितने राजनैतिक क्रान्तिया हुई है उसमे मधेसीयों ने उल्लेखनिय सहभागिता एवं कुर्बानी दी और नेपाल से निरंकुश राजतन्त्र व्यवस्था का अन्त हुआ ।

नेपाल मे गनतन्त्र स्थापना के बाद यहाँ पर मधेसी मूल के ”डा. रामवरण यादव” नेपाल के प्रथम राष्ट्रपति हुए । अपने कार्यकाल के दौरान वो केवल रिमोट कन्ट्रोल मेसिन की तरह काम करते रहे, मधेसीयों के साथ बेईमानी कर संविधान लिखा गया और सिंहदरबार मे उसे रामवरण जी द्वारा घोषणा करवाया गया । राष्ट्रपति होते हुए भी वेवस और लाचार रामवरण जी मधेसी हक अधिकार को कुण्ठित कर बनाया गया संविधान जारी करने को बाध्य थें, क्यूँकी मधेसी पद पर भले ही जाते है किन्तु उनपर कन्ट्रोल राज्य ही रखती है और उनका कार्य भी राज्य ही निर्धारण करती है । मधेसी मूल के व्यक्ति को गरिमामय पद तो दिया जाता है किन्तु उस पद का अधिकार नही दिया जाता है । नेपाल में दिपावली मनाते हुए संविधान जारी किया जा रहा था, तो मधेस में मधेसीयों का सिना गोली से छलनी किया जा रहा था और मधेस उसे काला दिन के रुप मे मना रहा था । गणतान्त्ररिक नेपाल के प्रथम् राष्ट्रपति होने के बावजुद मधेसी होने के कारण डा. रामवरण यादव जी को एक कामदार के रुप देखा गया । कामदार जब तक नौकरी करता है तब तक उन्से मतलब होता है, जैसे ही उसकी समय सीमा समाप्त होती है वो अन्जान बन जाता है । भूतपूर्व एवंम् प्रथम राष्ट्रपति से सरकारी निवास छिनकर बेईज्जति करके घर से बेघर कर दिया गया किन्तु , नेपाली मूल की राष्ट्रपति विद्या देवी भण्डारी की विदेश भ्रमण को राजकीय सम्मान के साथ राष्ट्रिय पर्व के रुप मे मानते हुए सरकार द्वारा दो दिन की सार्वजनिक छुट्टी का ऐलान कर दिया गया । नेपाली जनता स- सम्मान विद्या देवी भण्डारी को नेपाल मे कद्र करती है तो वहीं मधेसी जनता जनकपुर आने पर काला झण्डा और बिरोध प्रदर्शन के साथ उन्हे मधेस प्रवेस में रोक लगाती है ।

नेपाल के उप-प्रधान तथा गृह मन्त्री बिमलेन्द्र निधी मधेसी होने के कारण आज तक मलेठ घटना के दोषी प्रहरीयों को कार्वाही नही कर पाए है । वो भी एक कटपुत्लि की तरह केवल कुर्सी को भर कर बैठे हुए है, निर्दोष मधेसीयों की पुलिस नरसंहार कर देती है और बेवस मधेसी गृह मन्त्री वक्तव्य जारी करते है की मैने गोली चलाने का हुक्म नही दिया था । मधेसी जनसमुदाय हो या मधेसी मूल के मन्त्री प्रशासन या कर्मचारी सभी को राज्य ने लाचार बनाया हुआ है उनके लिए ना तो कोई स्पष्ट नीति है और ना ही स्वतन्त्रता पूर्वक न्याय सँगत कार्य करने की छुट और ना ही मधेसीयों को अधिकार प्रदान किए जाने की कोई सपष्ट नीति ही दिखाई देती है । नेपाल के ईतिहास मे जितने भी मधेसी मन्त्री हुए है उन्हे लाचार, बेवस, मजबुर और पहाडीयों का बफादार बनकर ही रहना पडा है । आज बहुत बडे पेईमाने पर मधेसी जनता हक अधिकार के लिए संघर्ष कर रही है किन्तु राज्य उसे अन्देखा कर बन्दुक की नोक पर मधेसीयों पे शासन कायम रखना चाहते है । मधेसी चाहे जितना भी कोशिस कर ले नेपाली बनने का किन्तु नेपालीयों ने आजतक मधेसीयों को ना तो नेपाली बन्ने दिया और ना ही माना है । मधेस के भावना को समेट कर मधेसीयों को भी अधिकार देते हुए यदि राज्य ने अपना शासन व्यवस्था विभेदपूर्ण नही बनाया होता तो आज मधेस में ईतनी कुर्बानीया नही देनी पडती । मधेसीयों को राज्य ने हमेसा बिभेदकारी चस्मा लगाकर ही देखा है आज मधेस का जो भी हालात है उसका जिम्मेदार राज्य की दमनकारी नीति है । राज्य की असपष्ट नीतियों ने आज मधेस को पराया बना दिया!!