:तिब्बा भाटी इतिहास:
जसोड़ भाटी राव दूदा
       (दुर्जनशाल जी):
       :: महारावल कालण १६९ ( भाटी  ) : 
      महारावल बीजलदे के स्वर्गवास के बाद राज्य के उचित राज्याधिकारी महारावल सालिवाहन १६७ के बड़े भाई कालण वीरमदे पाऊ प्रधान व् अन्य अमरावों की सर्व सम्मति से विक्रमी संवत १२४६ को जैसलमेर के सिंहासन पर विराजमान हुए । उस समय उनकी वृधावस्था थी । इनके विवाह गढ़ थिराद के बाघेला राव हंसराज की पुत्री भानकँवर गढ़ चितोड़ के राणा चौहान प्रथुमल की पुत्री अजब कँवर अमरकोट के सोढा राणा आसल जी की पुत्री रमा कुंवर खेड़ के गोहिल राव जेतमाल की पुत्री । चावड़ी राव दुदा की पुत्री सूरज कँवर पाटवी थी पाटवी कुंवर १ चाचगदेव २ पालण ३ आसराव ४ जेचंद थे । बाई १ रेण कँवर गंगा कँवर रामपुरे चन्द्रावतों ने परनाइ ।  
                                
खिजर खां बलोच का खाड़ाल पर आक्रमण ::

महारावल कालण के राज्य काल में भी खिजर खां बालोच ने खाड़ाल प्रदेश पर आक्रमण किया । वृद्ध महारावल ने डटकर सामना किया और वीर भाटियों ने खिजर खां को उसकी सेना सहीत यमलोक भेज दिया । और उनके सारे लुट के धन को कालण जैसलमेर लाये । महारावल कालण ने १८ वर्ष ३ मास ७ दिन राज करके संवत १२६४ विक्रमी को स्वर्ग सिधारे ।

                     :: जसोड़ ५० व् साजीता भाटी ५१  ::

महारावल कालण के पुत्र पालण के जसोड़ व् साजिता भाटी हुए । पालण के पुत्र जसोड़ पर शिव प्रसन्न हुए और वरदान दिया की छः पुत्र होंगे और एक पीढ़ी राज्य होगा । पालण के पुत्र :- १ दूदा ( दुर्जनसाल ) २ तिलोक सिंह ३ सागीण ४ नांगण ५ श्री एक नि ६ नारायण दास थे । जसोड़ भाटी जैसलमेर के भैसड़ा मुलाना , द्वाड़ा , रासला , डेलासर , धायसर , भादरिया , चांदन , सोडाकोर , मदासर , सान्वलों की ढाणी , बाणाड़ा , भीख सिंह की ढाणी में निवास करते है।

जसोड़ भाटी राव दूदा जी: “इण गढ़ हिन्दू बाँकड़ो” रावल दूदा भाटी (1319 ई. से 1331 ई.) जैसलमेर का साका (धर्म युद्ध) और जैौहर जैसलमेर के प्रथम साके में रावल मूलराज और राणा रतनसी ने अलाउद्दीन खिलजी की सेना का सामना किया था इस साके में जौहर हुआ और तत्पश्चात् जैसलमेर पर मुस्लिम राज हुआ। पाँच वर्ष बाद रावल दूदा भाटी वहाँ का शासक हुआ और उसने भी दिल्ली के मुसलमान तुगलक सुल्तानों से जबरदस्त लोहा दिया। रावल के भाई त्रिलोकसी ने सुल्तान के क्षेत्र में धाड़ा और लूट आरम्भ करा दी और सुल्तान के एक सामन्त काँगड़ बलोच को मार डाला और उसके बहुत से घोड़े ले आए। इसी प्रकार सुल्तान के लिए उन्नत नसल के घोड़े जा रहे थे सो वे भी रावल ने लूट लिए। इसके अतिरिक्त रावल दूदा ने तुगलक के राज्य में इतने बिगाड़ किए कि जिनकी गिनती नहीं। इस पर मोहम्मद तुगलक ने एक बड़ी सेना को जैसलमेर दुर्ग पर भेजा जिसने गढ़ का घेरा डाला। रावल दूदा ने जौहर और साका करने का निश्चय तो बहुत पहले ही कर रखा था। अब वह मुस्लिम सेना पर रोज धावे करने लगा। बहुत दिनों तक घेरा पड़ा रहा परन्तु कोई सफलता नहीं मिली। एक दिन दुर्ग के भीतर गन्दे सुअरों के दूध से पत्तले भर के दुर्ग के बाहर फेंकी। इससे मुसलमानों को महसूस हुआ कि अभी तो दुर्ग में दूध दही बहुत है। अतः वे घेरा उठा कर चल दिए। परन्तु देशद्रोही भीमदेव ने शहनाई बजाकर संकेत भेजा कि दुर्ग में रसद समाप्त होने को है। ऐसा भी कहते है कि उसने संदेश कहलवाया था। अतः मुसलमानों ने पुनः दुर्ग पर घेरा डाला। “रावल जमहर राचियो’’ इस प्रकार रावल ने साका करने का समय जानकर रानी सोढ़ी को जौहर करने की तिथि बताई। रानी ने स्वर्ग में पहचान करने के लिए रावल से शरीर का चिन्ह मांगा तब रावल ने पैर का अंगूठा काट कर दिया। दशमी के दिन जौहर हुआ। रानी ने तुलसीदल की माला धारण की तथा त्रिलोचन, त्रिवदन लिए और 1600 हिन्दू सतियों ने अग्नि में प्रवेश किया। अगले दिन एकादशी को रावल ने साका करने का विचार किया था सो सभी योद्धा मिल रहे थे। एक युवक राजपूत धाडू जो 15 वर्ष का था सो जूंझार होने वालों में से था। उसने सुना था कि कुंआरे की सद्गति नहीं होती है। अतः वह दु:खी हुआ। यह जानकर रावल ने अपनी एक मात्र राज कन्या जो नौ वर्ष की थी से धाडू का विवाह दशमी की आधी रात गए कर दिया। प्रभात होने पर उस राजकन्या ने जौहर में प्रवेश किया। अब एकादशी की दुर्ग के कपाट खोले गए और 25 नेमणीयात (नियम धर्म से बन्धे) जूझारों के साथ सैकड़ों हिन्दू वीर शत्रु पर टूट पड़े। रावल दूदा के भाई वीर त्रिलोकसी के सम्मुख पाँजू नामक मुस्लिम सेना नायक आया। यह अपने शरीर को सिमटा कर तलवार के वार से बचाने में माहिर था। परन्तु त्रिलोकसी के एक झटके से सारा शरीर नौ भाग होकर गिर पड़ा। इस पर रावल दूदा ने त्रिलोकसी की बहुत प्रशंसा की। कहा इस शौर्य पर मेरी नजर लगती है।

कहते है तभी त्रिलोक सी का प्राणान्त हो गया। इस भयंकर युद्ध के अन्त में 1700 वीरों के साथ रावल दूदा अपने 100 चुने हुए अंग रक्षक योद्धाओं के साथ रणखेत रहे। भारत माता की रक्षा में रावल दूदा ने अपना क्षत्रित्व निभाया और हिन्दुत्व के लिए आशा का संचार किया। रावल दूदा सदा ही अपने को “सरग रा हेडाऊ” अर्थात् स्वर्ग जाने के लिए धर्म रक्षार्थ युद्ध में रणखेत रहने को तत्पर रहते थे। 1. त्रिलोकसी भाटी, रावल के भाई 2. माधव खडहड़ भाटी 3. दूसल (दुजनशाल) 4. अनय देवराज 5. अनुपाल चारण 6. हरा चौहान 7. घारू इस प्रकार जैसलमेर ने ‘उत्तर भड़किवाड़’ अर्थात् देश के उत्तरी द्वार कपाटों के रक्षक के अपने विरुद को चरितार्थ किया और भारत के प्रहरी का काम किया।

                 (राव दूदा जी) 

तिब्बा भाटीयों की खांप: राव दूदा के वंशज आज भी भैंसड़ा (जैसलमेर) में निवास करते है, भैंसड़ा से इनके कुछ वंशजो ने पलायन किया तथा आगे जाकर वो "तिब्बा" कहलाए। जो जाकर तिंवरी, पाटोदी, शेखाला इत्यादि जगहों पर बस गए । राव दूदा के वंशजों के रूप में आज भी तिब्बा (जसोड़) भाटी इन्हीं गावों में निवास करते है। तिंवरी में तिब्बा भाटीयों के कुल दस रावले है जिनमे, सांवत सिंह जी के तीन पुत्र 1. कल्याण सिंह जी 2. रूप सिंह जी 3. मोड़ सिंह जी थे। 1.कल्याण सिंह जी के परिवार के रूप में - उदय सिंह, प्रेमसिंह 2. रूप सिंह जी के परिवार के रूप में - लक्ष्मण सिंह, मदन सिंह, लाल सिंह, दलपत सिंह 3. मोड़ सिंह जी के परिवार के रूप में - मनोहर सिंह, भीम सिंह, किशन सिंह

मंगल सिंह जी परिवार के रूप में - देवीसिंह जी ।
 लेखक - सांग सिंह तिब्बा  ( जसोड़) भाटी ठि. तिंवरी