ठाकुर मर्दन सिंह यादव
editठाकुर मर्दन सिंह यादव
editविदिशा जिले के पट्टन गांव ,जो कि अपने समय में स्वतंत्र जागीर हुआ करती थी के जागीरदार ठाकुर राम सिंह एवं हिंगोनी गांव के खमेरीयों की पुत्री मेंदाबाई कंवर के यहां भादो सुदी अमावस्या के दिन विक्रम संवत् 1805 की साल पट्टन की गड़ी में बालक मर्दन सिंह का जन्म हुआ ।
मर्दन सिंह यादव जी की शस्त्र विद्या, शिक्षा दीक्षा के उपरांत हिंगोंनी के सरेले गोत्र की प्यार कंवर के साथ विवाह हुआ। प्यार कंवर बहुत ही धार्मिक स्त्री थी ।
ठाकुर राम सिंह जी की असमय मृत्यु हो जाने के कारण कुंवर मर्दन सिंह अपने पिता को बाजीराव पेशवा द्वारा दी गई राजेश्री रावत की पदवी धारण कर सभी यदुवंशिय जंगी सरदारों की सरपरस्ती में पट्टन की गद्दी पर आसीन हुए।
राजेश्री रावत ठाकुर मर्दन सिंह ने अपनी कुशल नीति से मराठों को कर चुका कर अपनी जागीर को स्वतंत्र बनाए रखा । आपकी कोई संतान न होने पर वृद्धावस्था में आपने अपने छोटे भाई अमन सिंह के पुत्र जवाहर सिंह (ज्यौध सिंह) को अंग्रेजों के विरुद्ध जाकर गोदी लिया ।
ठाकुर मर्दन सिंह यादव जी के विषय में क्षेत्र में कई कहानियां प्रचलित हैं।
देवता के रूप में भी ठाकुर मर्दन सिंह यादव जी के नाम की दुहाई दी जाती थी।
होली तथा बारिश के मौसम में ठाकुर मर्दन सिंह जी के शौर्य को बखान करती हुई कई फाग और राई गायन किये जाते है।
जैसे कि।-
1.पट्टन के मर्दनसिंह दुल्हारे के हाथी बरी तरे झूलें।
2. पट्टन के मर्दनसिंह अहिरवाड़ा में एक बुंदेला ।
3. पवई धुरेरा के सब ही भले , मालय के दो चार।
पट्टन को एक ही भलो , जै की नंगी चमके तलवार ।।
4. पट्टन के मर्दन सिंह गढला लूटे रेन जिंदईया।
5. पार्वती के जा लगे और बेतवा के बा लगे ।
रहो न कोई सूरमा जै मर्दनसिंह से जा लडे ।।
1.ठाकुर मर्दन सिंह की मौजूदगी में लोहार की भट्टी में ताप नहीं आता था ।
2.ग्वालियर महाराज की दुहाई पर कुत्ता 'बकरे का कटा हुआ सर' पट्टन ले आना।
3.
आप के दरबार में कोई भी फरियादी निराश हो कर वापस नहीं जाता था।
इसी के कारण हमेशा आसपास के राज्यों में चर्चित रहते थे।
आपने कई लड़ाइयां सिर्फ फरियादियों के कहने पर लड़ी।
4.समकालीन जागीरदारों के मान रक्षा के लिए नवाब को थूका थूक चटबाना।
5.अपने पूर्वजों की तरह आपने भी संवत् 1903 की साल गढी का जीर्णोद्धार कराया,
राम जानकी का मंदिर बनवाया ,
बाग लगाए,
समाज सेवा के लिए सड़क निर्माण कराई।
कुए खुद बाये।
6.अंग्रेजो के खिलाफ समकालीन जागीरदारों को एक करना ।
7.झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के पक्ष में अंग्रेजों के विरुद्ध मोर्चाबंदी की
जिसके कारण स्वतंत्र पट्टन जागीर को ग्वालियर राज्य में मिला दिया गया। एवं संवत् 1916 (1858 ई.) की साल मां भारती का लाल , कमजोरौं की ताकत , यदुवंशियों के गौरव , स्वर्ग के वासी हो गये ।