डाँ.अनिल सुलभ[1]

साहित्यिक अवदान


बालपन से हीं संस्कृति-कर्म से जुड़ाव और साहित्यिक रुझान। गाँव में महीनों-महीनों रहकर 'राम-लीला' का प्रदर्शन करने वाली 'रामलीला-मंडलियों का डा सुलभ के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा। साहित्य और संस्कृति-कर्म का बीज किशोर हो रहे सुलभ पर उन्हीं दिनों पड़ चुका था। लगभग १२ वर्ष की आयु से कथा-लेखन का कार्य आरंभ हो गया। उनकी पहली कहानी 'दोस्तों के लिए दुआँ' विद्यार्थियों के बीच बहुत हीं लोकप्रिय और चर्चित हुई। उसे विद्यालय के शिक्षकों से भी सराहना प्राप्त हुई और मार्ग-दर्शन भी। वर्ष १९७८ में पटना आने के बाद से साहित्य और संस्कृति-कर्म को नयी दिशा मिली और नया फलक भी मिला। साहित्यिक-संस्था 'साहित्यांचल' से जुड़ने और वरिष्ठ साहित्यकारों का मार्ग-दर्शन पाकर गीत और ग़ज़लों की झड़ियाँ लगी। गीत और ग़ज़ल की एक-एक पुस्तक भर की सामग्री छात्र-जीवन में हीं तैयार हो गई थी पर उनका प्रकाशन नहीं किया जा सका। दुर्भाग्य से दोनों हीं पांडुलिपियाँ खो गईं और कवि पर इसका मानसिक आघात पहुँचा, जिसके कारण आने वाले अनेक वर्षों तक काव्य-रचनाएँ न के बराबर हुईं। किंतु इस बीच पत्रकारिता से जुड़ने के कारण निबंध-लेखन सहित गद्य के कार्य होते रहे। यात्रा-वृतांत भी पर्याप्त लिखे गए। किंतु पुस्तकाकार प्रकाशन में पूर्व की भाँति हीं शिथिलता रही।

प्रकाशित पुस्तकें
१) प्रथम पग (यात्रा-वृतांत)
२) प्रियंवदा (कथा-संग्रह)
३) मैं मरुथल-सा चिर प्यासा (गीत-संग्रह)
४) सद्भावना-ग्रंथ (डा अनिल सुलभ की पचास-पूर्ति पर डेढ़ सौ से अधिक साहित्यकारों और विद्वानों के उन पर केंद्रित विचारों का संपादित ग्रंथ। संपादक- बलभद्र कल्याण)

प्रकाशनाधीन;
१) तुम्हारे नाम ग़ज़ल लिखता हूँ (ग़ज़ल-संग्रह)
२) अवांक्षित यात्रा (संस्मरणात्मक आत्म-कथ्य)
३) सात सफ़र (यात्रा-वृतांत)
४) सात समुन्दर पार (यात्रा-वृतांत)

अपूर्ण पुस्तकें;
१) भजन संग्रह
२) अनिल सुलभ के दोहे
३) बच्चों के गीत
इनके अतिरिक्त अनेक पत्र-पतत्रिकाओं में लेखों गीत-ग़ज़लों का प्रकाशन। अनेक पुस्तकों में प्रस्तावना / माँगलिका आदि का लेखन एवं समीक्षाएँ।

  1. ^ Sulabh, Anil. "Dr". Anil Sulabh. {{cite web}}: Cite has empty unknown parameter: |dead-url= (help)