क्रोध कभी नहीं 
यह आर्टिकल लिखते समय मुझे बहुत गर्व हो रहा है क्योंकि यह मेरा अनुभव रहा है और मैंने खुद इसपर काम किया है और अपनी इस कमी को दूर किया है.

दोस्तों, गुस्सा किसे नहीं आता. हम लोग कोई संत-महात्मा तो नहीं है. गौर से देखिये तो संत लोगों को भी तो गुस्सा आता था. लेकिन बहुत गौर करने की बात यह है कि गुस्से में आप अपना नुक्सान तो नहीं कर रहे हैं. कहीं कोई आपको गुस्सा दिला कर आपके गुस्से की गर्मी से अपनी रोटी तो नहीं सेक रहा या फिर अपनी दाल तो नहीं गाला रहा. कोई आपकी प्रतिभा को दबा तो नहीं रहा.

गुस्से में आपका दिमाग १० प्रतिशत ही काम करता है. सारा ९० प्रतिशत उस सामने वाले व्यक्ति की अर्चना में चला जाता है. आपका सारा ध्यान उस सामने वाले पर चला जाता है और आप जैसे उसकी माला जपने लगते हैं. बस, आपसे जो कुछ हो सकता है आपसे वह भी नहीं हो पता. और अंत में आपको भारी कीमत चुकानी पड़ती - गुस्से की.

हमारे एक ऑफिस के कलीग हैं, उनके साथ जब भी कोई मीटिंग या कांफ्रेंस होता तो वह एक ऐसा ऐटिटूड से बात करता जिससे मुझे काफी गुस्सा आ जाता. सामान्यतः, वह बहुत आराम से बात करेगा लेकिन मीटिंग में कुछ ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करेगा कि गुस्सा आ ही जायेगा. जैसे मैं जब कुछ बोल रहा हूँ तो बीच में टोक कर 'सॉरी तू इंटरप्ट' या फिर मैं जब उसका जवाब दे रहा हूँ तो 'होल्ड ऑन' या ऐसा कुछ. बस इतने पर मेरा पल्स बढ़ जाता था और दिमाग अपसेट. अब सिर्फ उसका मन में माला जपना शुरू. गुस्से में कितनी बाते मैं भूल जाता और बाद में पश्चाताप करता. फिर मैंने इस बात पर गौर किया और उसके टोकने या रोकने पर मैं उसको मन ही मन में माफ़ कर देता और उससे बिलकुल ध्यान हटा कर जिस विषय पर बात होती उस पर कंसन्ट्रेट करता. इससे मेरी बात हर मीटिंग में सुनी जाने लगी और मैंने गुस्से पर जीत हासिल कर लिया.

गुस्से पर काबू पाना आसान तो नहीं है और कभी कभार गुस्सा करना उतना बुरा भी नहीं है लेकिन यह तब तक ठीक है जब तक गुस्सा आपको नुक्सान पहुंचने लगे और आपका टैलेंट गुस्से के वजह से प्रभावित होने लगे. तो बस आज से जब भी गुस्सा आये तो गुस्से की अवस्था में खुद को गौर से देखिए और उस गुस्से के वहज और उसके परिणाम पर विचार करिये फिर खुद से सवाल पूछिए - 'क्या यह कार्य बिना गुस्सा किये हो सकता था?'. आप हर बार यह महसूस करेंगे कि गुस्सा किये बिना आप उसी काम को एक एक्सपर्ट नेगोशियटर की तरह कर सकते थे