जय श्री विश्वकर्मा
विश्वकर्माय नमः
लोहार
कर्म -लोहार
जाती-विश्वकर्मा
वर्ण-ब्राम्हण
पितामह-विश्वकर्मा जी
वंशज -मनु (विश्वकर्मा जी के सबसे बड़े पुत्र)
लोहार एक कर्म है , जाती नही ।
जाती विश्वकर्मा है ।
ओर वर्ण अपना ब्राम्हण।
विश्वकर्मा एक भारतीय उपनाम है जो मूलतः शिल्पी (क्राफ्ट्समैंन) लोगों द्वारा प्रयोग में लाया जाता है। विश्वकर्मा ब्राह्मण जाति से भी संपर्क रखते है विश्वकर्मा पुराण के मुताबिक विश्वकर्मा जन्मों ब्राह्मण: मतलब ये जन्म से ही ब्राह्मण होते । [1] इसे कई जातियों के लोग प्रयोग में लाते हैं जैसे कि पांचाल ब्राह्मण, धीमान, लोहार, शिल्पकार, करमकार । इत्यादि और इन जातियों के लोग विश्वकर्मा को अपना इष्टदेवता मानते हैं। विश्वकर्मा एक हिन्दू देवता हैं[2] और उन्हीं के नाम पर विभिन्न प्रकार के शिल्प कार्य करने वाली जातियाँ अपने को 'विश्वकर्म' कहतीं हैं।
विश्वकर्मा वंश : विश्वकर्मा वंश कहीं-कहीं भृगु कुल से और कहीं अंगिरा कुल से संबंध रखते हैं। इसका कारण है कि हर कुल में अलग-अलग विश्वकर्मा हुए हैं। हमारे देश में विश्वकर्मा नाम से एक ब्राह्मण समाज भी है, जो विश्वकर्मा समाज के नाम से मौजूद है। जांगीड़ ब्राह्मण, सुतार, सुथार और अन्य सभी शिल्पी निर्माण कला एवं शास्त्र ज्ञान में पारंगत होते हैं। यह ब्राह्मणों में सबसे श्रेष्ठ समाज है क्योंकि ये निर्माता हैं।
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शिल्पज्ञ, विश्वकर्मा ब्राह्मणों को प्राचीनकाल में रथकार वर्धकी, एतब कवि, मोयावी, पांचाल, रथपति, सुहस्त सौर और परासर आदि शब्दों से संबोधित किया जाता था। उस समय आजकल के सामान लोहाकार, काष्ठकार, सुतार और स्वर्णकारों जैसे जाति भेद नहीं थे। प्राचीन समय में शिल्प कर्म बहुत ऊंचा समझा जाता था और सभी जाति, वर्ण समाज के लग ये कार्य करते थे।
विश्वकर्माSभवत्पूर्व ब्रह्मण स्त्वपराSतनुः। त्वष्ट्रः प्रजापतेः पुत्रो निपुणः सर्व कर्मस।।
अर्थ : प्रत्यक्ष आदि ब्रह्मा विश्वकर्मा त्वष्टा प्रजापति का पुत्र पहले उत्पन्न हुआ और वह सब कामों में निपुण था।
प्रभास पुत्र विश्वकर्मा, भुवन पुत्र विश्वकर्मा तथा त्वष्टापुत्र विश्वकर्मा आदि अनेक विश्वकर्मा हुए हैं। यहां बात करते हैं प्रथम विश्वकर्मा की जो वास्तुदेव और अंगिरसी के पुत्र थे। विश्वकर्मा के प्रमुख 5 पुत्र थे- मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ।
विश्वकर्मा-[1]
लोहार वंश [2]