सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस द्वारा सन् 1976 से 2006 तक विश्व के समस्त प्रशासक, शासक, विद्वान, मनोवैज्ञानिक, मान्त्रिक-तान्त्रिक-जादूगर, योगी-महात्मा, तथाकथित भगवानों और वैज्ञानिकों को भी अपने द्वारा देय जीव (रूह-सेल्फ) एवं ईश्वर (नूर-सोल-डिवाइन लाइट) और परमेश्वर (खुदा-गाॅड-भगवान्-काल अलम) तीनों का बातचीत सहित पृथक्-पृथक् साक्षात् दर्शन-दीदार कराने वाले ‘तत्त्वज्ञान’ (खुदाई इल्म) के सम्पूर्णत्त्व, परमसत्यता और सर्वोच्चता के जाँच हेतु खुली चुनौती देते रहे ।

साथ ही साथ यह भी चुनौती देते रहे कि वर्तमान में पूरे भू-मण्डल पर किसी के भी पास यह ‘तत्त्वज्ञान’ (खुदाई इल्म) नहीं है । यदि कोई कहता है कि मेरे पास है तो सद्ग्रन्थीय सत्प्रमाणों और आवश्यकता होने पर प्रायौगिक विधानों द्वारा भी किसी को भी मात्र दो घण्टे में गलत प्रमाणित करने की खुली चुनौती देते रहे । जाँचकर्ता सादर आमन्त्रित होते रहे ।

खुदा-गाॅड-भगवान् या काल अलम कोई मानव शरीर मात्र नहीं अपितु एक सर्वोच्च शक्ति-सत्ता है जिनका अवतार (हाजिर-नाजिर) वर्तमान में भू-मण्डल पर होकर ‘धर्म-धर्मात्मा-धरती’ रक्षार्थ सशरीर रूप में यत्र-तत्र विचरण हो रहा था । यह कोई मिथ्या और महत्त्वाकाँक्षी प्रचारित बात नहीं अपितु एक वास्तविक परमसत्य तथ्य है। किसी को भी ‘ज्ञान’ और ग्रन्थ से जाँच-परख करने की खुली छूट दी जाती रही है ।

उपरोक्त बातें, जिज्ञासु और समर्पित-शरणागत श्रद्धालु को तो सहज ही प्राप्त होती रहीं, मिलती रहीं परन्तु जाँचकर्ता को संसार सहित शरीर का मिथ्यात्त्व तथा जीव या रूह ( Self ) एवं ईश्वर या नूर-सोल ( Devine Light ) और खुदा-गाॅड-भगवान् या काल अलम ( Supreme Almighty ) को पृथक्-पृथक् रूप में बातचीत सहित साक्षात् दर्शन-दीदार, अद्वैतत्त्व बोध (वेद्, उपनिषद, रामचरित मानस, गीता वाला विराट दर्शन तथा गरुड़-नारद, अर्जुन-हनुमान वाला ही और वही श्री विष्णु जी, श्री राम जी, श्री कृष्ण जी का साक्षात् वास्तविक (तात्त्विक) दर्शन भी, बाईबिल-र्कुआन आदि सद्ग्रन्थीय और प्रायौगिक सत्प्रमाणों सहित यथार्थतः जानने और परखने-पहचानने को मिलता रहा । ऐसी चुनौती परमपूज्य कलियुगीन एकमेव एक पूर्णावतारी सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस द्वारा दी जाती रही है ।