थारू

ऊधमसिंह नगर जिले में मुख्य रुप से खटीमा, किच्छा, नानकमत्ता और सितारागंज के 141

गावों में निवास करने वाला थारू समुदाय जनसंख्या की दृष्टि से उत्तराखण्ड व कुमायूं क्षेत्र का सबसे बड़ा जनजातीय समुदाय है। उत्तराखण्ड के अलावा ये उ.प्र. के लखीमपुर, गोंडा, बहराइच, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, आदि जिलों, बिहार के चंपारण तथा दरभंगा जिलों तथा नेपाल के पूर्व में भेंची से लेकर पश्चिम में 'महाकाली' नदी तक तराई एवं भावर क्षेत्रों में फैले हुए हैं।

उत्पत्ति सामान्यतः थारूओं को किरात वंश का माना जाता है जो कई जातियों एवं उपजातियों में विभाजित हैं। थारू शब्द की उत्पत्ति को लेकर में विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ विद्वान राजस्थान के थार मरूस्थल से आकर बसने व अपने को राणाप्रताप का वंशज कहने के कारण इनका नाम ‘थारू' पड़ने का समर्थन करते हैं।

• इन लोगों में ऐसी मान्यता है कि हमारे पूर्वज चित्तौड़गढ़ से लंका लड़ाई में गये थे लेकिन वहाँ डर के कारण थरथर कांपने लगे थे। जिस कारण थारू कहलाएं और कालान्तर में तराई क्षेत्र में आकर बस गये।

शारीरिक गठन ये लोग कद में छोटे, पीत वर्ण, चौड़ी मुखाकृति तथा समतल नासिका वाले होते हैं जो कि मंगोल प्रजाति के अत्यधिक निकट हैं। इनके पुरुषों की तुलना में स्त्रियां अधिक आकर्षक तथा सुंदर होती है।