दल-बदल विरोधी कानून(Anti-Defection law) के मुख्य बिंदु क्या हैं ?

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दल-बदल क्या है in hindi :- भारत के संविधान के निर्माण के वक्त दल-बदल कानून नहीं था, लेकिन जब हमें लगा की कई नेता अवसर की तलाश करने लगे हैं और इसी कारण एक पार्टी का नेता दूसरी पार्टी में शामिल होना, एक पार्टी की सरकार गिरा देना, किसी की सरकार बना देना यह सिलसिला बहुत तेजी के साथ चलने लगा जिसका असर यह हुआ कि भारतीय लोकतंत्र अस्थाई होने लगा।

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हरियाणा में एक MLA ने एक दिन में 5 पार्टियां बदल दी थी जिसका नाम था गयाराम- इसलिये दल-बदल को आयाराम-गयाराम भी कहने लगे।

दल-बदल कानून निर्वाचित सांसदों/विधायकों पर लागू होता है ना कि गैर-निर्वाचित सदस्यों पर। यानी यह सदन के सदस्यों पर लागू होता है एवं सदन में 3 प्रकार के सदस्या होते हैं:-

1. दल के सदस्य(Party Member) :- इसमें सदस्यों को पार्टी के निर्देश मानना होता है लेकिन यह सदन के अन्दर लागू होता है जैसा कि राजस्थान के मामले में हुआ।

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यदि कोई सदस्य स्वैच्छा से दल की सदस्यता को छोड़ता है तो उसे भी अयोग्य माना जायेगा।

2. निर्दलीय सदस्य(Independent Member) :-  यदि कोई निर्दलीय सदस्य किसी दल की सदस्यता ले लेता है तो अयोग्य हो जायेगा।

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3. मनोनीत सदस्य(Nominated Member) :- यदि कोई मनोनीत सदस्य 6 माह के भीतर किसी दल की सदस्यता ले लेता है तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन 6 माह के बाद सदस्यता लेता है तो अयोग्य घोषित हो जायेगा।

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जब एक सरकार बदलती है तो नीतियां भी Change होती हैं, विकास में भी बाधा पहूंचती है जिसके बाद लगा कि कोई ऐसा कानून होना चाहिए जो इस दल-बदल को रोक सके।

इसलिये 1985 में सांसदों तथा विधायकों द्वारा  एक राजनीतिक दल से दूसरे दल में जाने पर दल-परिवर्तन के आधार पर अयोग्य करने का प्रावधान 52वें संविधान संशोधन में किया गया और नई 10वीं अनुसूची जोड़ी गयी। इस अधिनियम को दल-बदल कानून कहते हैं। [1]