गढ़-कुण्डार क़ा इतिहास

गढ़-कुण्डार का दुर्ग और उसके भग्नावशेष गढ़-कुण्डार मध्यप्रदेश के निवाङी जिले में स्थित एक गाँव है। इस गाँव का नाम यहां स्थित प्रसिद्ध दुर्ग (या गढ़) के नाम पर पड़ा है। यह किला उस काल की बेजोड़ शिल्पकला का एक बेहतरीन नमूना है।

गढ़-कुण्डार क़ा इतिहास गढ़-कुण्डार का इतिहास बहुत ही गौरवशाली है। जूनागढ़ गुजरात के राजा रूढ देव जू खंगार के पुत्र खेत सिंह खंगार क्षत्रिय दिल्ली सम्राट पृथ्वी राज चौहान के साथ बुंदेलखंड में आए। जो की पृथ्वी राज चौहान के सामंत थे महाराजा खेत सिंह खंगार क्षत्रिय जी ने गढ-कुण्डार पर खंगार क्षत्रिय राज्य की स्थापना की और 1182 से लेकर 1347 तक खंगार क्षत्रिय शासन रहा जिसमें खूब सिंह खंगार , राजा मानसिंह खंगार , राजा हुमात सिंह खंगार क्षत्रिय , राजा नाग देव सिंह खंगार , राजा बरदायी खंगार क्षत्रिय राजवंश साथ ही गढ़-कुण्डार की विरांगना केशर दे।

गढ़-कुण्डार क़ा जौहर बुंदेलखंड जिसे जुझौतिखण्ड के नाम से जाना जाता था बुंदेलखंड का पहला जौहर गढ़-कुण्डार में हुआ था तुगलक ने जब गढ़-कुण्डार पर आक्रमण किया तब खंगार क्षत्राणियों ने अपने स्वाभिमान की रक्षा हेतु किले में बने अग्नी-कुण्ड में हजारों की संख्या में जौहर किया था परन्तु कभी स्वाभिमान को नहीं झुकाया जो गर्भवती रानी थी वह गुप्त रास्ते से खंगार क्षत्रिय राजवंश को जीवित रखने के लिए जंगलों का सहारा लिया। इसमें गढ़-कुण्डार की विरांगना केशर दे ने तलवार से भीषण युद्ध किया और अंत में जौहर किया जिनका स्मारक आज भी गढ़-कुण्डार पर बना हुआ है।

गढ़-कुण्डार में खंगार क्षत्रियों की कुल देवी माँ गजानन क़ा मन्दिर माँ गजानन जो हाथी और शेर पर विराजमान है। जो खंगार क्षत्रियों की कुल देवी हैः माँ गजानन का प्राचीन मंदिर बना हुआ जिनका प्रसिद्ध जल-कुण्ड आज भी हजारों सालों से पहाड़ पर बना हुआ है। गढ़-कुण्डार के महाराजा खेत सिंह खंगार जी देवी क़े वरदानी थे उनकी चमत्कारी तलवार जो पत्थर को भी चीर देती थी वह माँ का वरदान स्वरुप है।

क्षत्रियों में सिंह शब्द का प्रयोग सिंह शब्द एक उपाधि है जो खंगार क्षत्रिय राजाओं की देन हैं जब पृथ्वी राज चौहान बुंदेलखंड की ओर कूच कर रहे थे तभी भिन्ङ मार्ग पर रात्रि में ठहरे तभी कुछ षडयंत्रकारीयों ने उन्हें उकसाया की खेत सिंह जू देव की वीरता का परिचय लियां जाए और फिर सुबह एक आयोजन हुआ जिसमें बब्बर शेर और खेत सिंह जी का भीषण युद्ध हुआ जिसमें खेत सिंह खंगार क्षत्रिय जी ने शेर को चीर दिया चारो तरफ आवाज आयी शेर चीरा शेर चीरा तभी पृथ्वी राज चौहान ने कहा सिंह पर विजय प्राप्त करने वाले सिंह होते हैं 11 वी सदी के बाद सभी राजा अपने नाम के साथ सिंह जोड़ने लगे।

वर्ष 2006 में मध्यप्रदेश राज्य क़े माननीय मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान जी एवं भारत के गृहमंत्री माननीय श्री राजनाथ सिंह जी ने महाराजा खेत सिंह खंगार जी की जयंती समारोह के उपलक्ष्य में भव्य गढ़-कुण्डार महोत्सव की घोषणा की जो मध्यप्रदेश सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा तीन दिवसीय संचालित किया जाता है जिसमें सम्पूर्ण भारत वर्ष से लाखों खंगार क्षत्रिय आते हैः भव्य मेले का आयोजन होता। गढ़-कुण्डार में 27 दिसंबर को महाराजा खेत सिंह खंगार जी की जयंती मनाई जाती है।

★रहस्य★ देश भर में अनेक ऐसे किलें हैं, जिन्हें हम जैसा देखते है, वैसा ही पाते हैं। लेकिन यह कहानी है उस रहस्यमयी किलें की, जिसके बारे में हम आपको बताने जा रहे है। जिसकी विशेषता ही इतनी डरावनी है कि अनेक लोग इसे सुनकर ही यहां जाने के बारे में सोचते हैं। बावजूद इसके यहां सैलानियों की भीड़ लगी रहती है। इस किला की विशेषता यह है कि 12 किलोमीटर दूर से किला की आकृति को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, लेकिन जैसे ही हम किलें के नजदीक जाते है किला वैसे-वैसे गायब होने लगता है। नजदीक पहुंचने के बाद तो जैसे कुछ समझ पाना ही मुश्किल होता है कि जो दूर से देखा था, क्या हम वहीं हैं। इतना ही इस किले की कहानियां भी डरावनी हैं।

हम बात कर रहे है बुंदेलखंड के निवाड़ी जिले में स्थित गढ़-कुण्डार किला की। यह किला मध्य भारत में मध्यप्रदेश राज्य के उत्तर में स्थित एक छोटे से गांव में स्थित उच्च पहाड़ी पर स्थित है। ओरछा से सिर्फ 70 किमी दूर है। यह मध्यप्रदेश में विरासत के किलों में से एक है और प्रेम, लालच और भयानक तोडफ़ोड़ का एक महान इतिहास भी है। गढ़-कुण्डार इतिहास में प्रमुख व्यक्तित्व नागदेव और रूपकुँवर हैं। उनकी प्रेम कहानियां अभी भी बुंदेलखंड के लोक गीतों में हैं। यह इस तरह से स्थित है कि 12 किमी से यह नग्न आंखों से दिखाई देता है, लेकिन जब आप इसक़े करीब पहुंचते हैं, यह विहीन दिखाई देता है और उसे ढूंढना मुश्किल हो जाता है। यह 1539 ईसवी तक बुंदेलों की राजधानी था। बाद में राजधानी को बेतवा नदी के तट पर ओरछा स्थानांतरित कर दिया गया था।.

जिनागढ़ के महल के नाम से प्रचलित था खेत सिंह खंगार जी न केवल पृथ्वीराज चौहान जी के प्रमुख थे बल्कि एक करीबी दोस्त भी थे। वह मूल रूप से गुजरात से थे उन्होंने युद्ध में परमाल शासक शिव को पराजित किया और किले पर कब्जा कर लिया था और खंगार राजवंश की नींव रखी। उस समय तक, यह जिनागढ़ के महल के नाम से जाना जाता था। खेत सिंह खंगार जी ही थे जिन्होने खंगार राजवंश नींव रखी और जुझौतीखंड क्षेत्र में खंगार शासन को मजबूत किया। वर्ष 1212 ई में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद, खंगार राजवंश की पांच पीढ़ीयों ने यहां शासन किया। बाद में खेत सिंह के पोते महाराजा खूब सिंह खंगार ने जिनागढ़ पैलेस को दृढ़ कर दिया और इसे ‘कुण्डार किले’ के नाम से रखा। कुण्डार शासक, इस किले से लेकर 1347 ईस्वी तक शासन करते रहे, मोहम्मद तुगलक ने इसे कब्जा कर लिया था और बुंदेल शासकों को प्रभारी क़े रूप में उनको सौंप गए थे। नागदेव आखिरी खंगार शासक थे, जिनकी कई अन्य खंगार सेना के जनरल के साथ हत्या कर दी गई थी, जिसमें बुंदेल शासकों ने हिस्सा लिया था। उस समय में बुंदेल शासकों ने मुगलों से इसकी जिम्मेदारी लें ली थी बुन्देला राजा वीर सिंह देव ने इसके लिए आवश्यक नवीकरण का काम किया और इसके वर्तमान स्वरूप को प्रदान किया।

खंडहर में बदल रहा स्वरूप, लेकिन पहचान कम नहीं गढ़-कुण्डार का किला देखरेख के अभाव में दिन प्रतिदिन खंडहर में बदलता जा रहा हैं। धन के लालच में लोगों द्वारा इसमें जगह-जगह खुदाई भी कर दी गयी हैं, लेकिन इसकी पहचान पर अब तक कोई फर्क नहीं पड़ा है। गढ़-कुण्डार का किला अब भी अपनी पहचान देश में बनाए हुए है। जैसा कि सभी ने इतिहास में पढ़ा है, वहीं शान आज भी बरकरार है। गढ़-कुण्डार किला चंदेला, बुंदेला और खंगार राजवंश जैसे शासकों के अधीन रहा। यह प्रकाश में आया जब 1180 में राजा पृथ्वी राज चौहान के प्रमुख खेत सिंह खंगार ने अपनी राजधानी यहां बनाने की योजना बनाई। गढ़-कुण्डार किले के महत्वपूर्ण पर्यटक आकर्षण हैं। मुरली मनोहर मंदिर, रानी का महल, अन्धाकोप, स्टोरेज हाउस, राज महल, नरसिंह मंदिर, सिद्ध बाबा स्थान, रिसाला, दीवान-ए-अमा, दीवान-ए-ख़स, घोड़ा अस्तबल, जेल घर, मोती सागर, राव सिया हाउस आदि। इसी तरह हम भी पास के पर्यटन बिंदुओं पर जा सकते हैं जैसे निमा शहर, गढ़ी हाथीया किला आदि। उनके स्थानीय देवी महा माया गिध्दवाहनी का एक महत्वपूर्ण मंदिर है, जिसे स्थानीय लोगों के बीच बेहद महत्व पूर्ण माना जाता है। यहां एक पानी की टंकी भी मंदिर के करीब, सिंह सागर टैंक में मौजूद है। किले के उत्तर-पश्चिम में, बेतवा नदी 3 मील की दूरी पर बहती है। हर सोमवार एक स्थानीय बाज़ार दिन में होता है जिस पर स्थानीय लोग खरीदारी करने के लिए एकत्र होते हैं, जो उनके रिवाज, अनुष्ठान, स्वाद आदि को समझने के लिए एक अच्छा दिन है। अक्टूबर से जनवरी तक यहां अधिकांश सैलानियों की भीड़ पहुंचती है।


यह है डरावनी कहानी, पूरी बरात हो गई थी गायबस्थानीय निवासी इस किले के बारे में जो बताते है, उसे कुछ डरावनी कहानियां भी है। स्थानीय वृद्ध डोमन सिंग बताते है कि अनेक वर्षों पूर्व इस किले मे घूमने के लिए आई पूरी की पूरी बारात गायब हो गई थी। जिसके बारे में अब तक कोई सुराग नहीं मिल सका है। यह बारात अब भी रहस्य बनी हुई है। डोमन सिंग के अनुसार काफी समय पहले यहां एक गांव में एक बारात आई थी, जिसमें करीब ७० लोगों के शामिल होना बताते है। जो कि सभी गढ़ कुंडर के किला घूमने के लिए गए थे। बताया जाता है कि बाराती किला में घूमते-घूमते वहां चले गए थे, जहां कोई नहीं पहुंच सकता था। यह किला का जमीनी के भीतर का हिस्सा बताया जाता है। इसके बाद बाराती वापस ऊपर नहीं आ सके। इस तरह पूरी की पूरी यहां गायब हो गई थी। बताया यह भी जाता है कि इस घटना के बाद जमीन से जुड़े दरबाजों को बंद कर दिया गया था। गढ़कुंडार के रहस्यों के बारे में ग्रामीणों द्वारा और अधिक तो बताया गया, लेकिन इशारों ही इशारों में इतना जरूर कह दिया कि किला रहस्य से भरा हुआ है। किले की एक और विशेषता है कि भूलभुलैया और अंधेरा रहने के कारण दिन में भी यह किला डरावना लगता है।