KISAN PAR KAVITA अन्नदाता – किसान
चीर कर धरती का सीना पैदा कर अन्न धान। वो फ़टे कपड़ों में लिपटा नाम पड़ा किसान।।
किसान इस देश की अर्थव्यवस्था का सबसे मजबूत किला। पर राजनीति की तोपों ने दिया इस किले को हिला।।
हिल जाता किसान जब निकलें ढेरों योजना इसके नाम। किसानी छोड़ करना पड़े योजना का लाभ उठाने का काम।।
काम में आराम रत्तीभर, कर्ज गया निरंतर बढ़ता। ओले, सूखे, बारिश ने बनाया किसान का भुरता।।
भुरता बन जाता जब किसान और उसका पारिवारिक जीवन। करके वह आत्मदाह करे सरकार को भेंट स्वरुप अर्पण।।
अर्पण रहा खेती करने को सो सदा रहा लाचार। सरकार नीतियाँ बनाके बोले सुनाओ शुभ समाचार।।
समाचार रहा रोको आत्महत्या या करो जी कर्जमाफी। लगे किसान की खुशहाली हेतु यह दोनों ही काफी।।
काफी नहीं मिला किसान को अपनी फसल का दाम। इसी कशमकश में धरना और लो जी हुआ बदनाम।।
बदनाम करे जी शहरी क्योंकि किया जी सड़क जाम। किसान जो रीड की हड्डी बन गया जी अब आम।
आम बना सो सब चूसे बनाके राजनितिक हथियार। फसल नहीं अब किसान का हो रहा देश में व्यापार।