यह पवित्र मजारा सूफी संत काशिफ साहिब जी का है इनका जन्म 15 2al हिजा हिजा 573 हिजरी 4 जून 1178 रविवार को उच शरीफ बहावलपुर पाकिस्तान में हुआ यह बचपन से ही धार्मिक विचारों के थे संत जी बहुत ही शांत व भोले सभा के थे सभा के थे थे संत जी के पिता का नाम शहरोज अली हसन और माता जबीहा संत जी का एक छोटा भाई जिसका नाम अबीद हसन हसन था बचपन में जब संत जी को को मौलवी जी के पास पढ़ने के लिए भेजा जाता तो वह चुपचाप बैठे रहते और सब उन्हें कहते यह नहीं पड़ेगा कुछ लोगों को ऐसा लगता था कि यह बच्चा मंदबुद्धि है लेकिन शांत जी बंदगी में ही लिंगर लिंगर चुपचाप बैठे रहते इनका एक दोस्त जिसका नाम इमाम ख्वाजा रशीदु दीन मीनाहै था यह इमाम साहब उस मस्जिद के इमाम थे जहां बाबा फरीदुद्दीन गंज ए शकर ने चिल्लाई महेश किया था यह बाबा जी के के बहुत ही प्यारे मित्र थे कभी कबार इन दोनों मित्रों में बहुत ही परमेश्वर के मार्ग पर चलने की वार्तालाप होती और अंत में यह कहकर उठ जाते एक दिन वह आएगा जब खुदा हमें परवान करेगा और अपनी बंदगी बक्शे गा काफी समय बीत जाने के बाद जब खवाजा रसीदओ दीन के साथ वार्तालाप करते हुए एक दिन संत जी ने इमाम साहब से पूछा क्या कोई ऐसा दरवेश इमाम साहब से पूछा क्या कोई ऐसा दरवेश है जो हमें उस परमेश्वर की बंदगी के लिए रास्ता दिखा सके क्योंकि मेरी इतनी उम्र हो जाने के बावजूद मुझे उस परमेश्वर के एक पल के लिए भी दर्शन नहीं हुए मैं आपसे विनती करता हूं अगर कोई ऐसा दरवेश आपने देखा हो जो उस परमेश्वर की बंदगी में हर समय डूबा रहता हो अपना खाना पीना रहना बैठना उठना सब खो चुका हो खो चुका हो जो मेरी दुआ कबूल करे और मेरे को उस परमेश्वर की बंदगी के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करें तो ख्वाजा रसीदु दीन बहुत सोचकर बाद जवाब दिया हां एक दरवेश ऐसा है जो तेरी मन की इच्छा पूरी कर सकता है वह दरवेश यहां से बहुत दूर अपने गुरु के पास बख्तियार काकी जी के चरणों में रहता है वह दरवेश काफी समय पहले इस मस्जिद के कुएं में चिलाए मांकुश को पूरा किया था उस दरवेश का का नाम बाबा फरीदुद्दीन मसूद गंज शकर है अगर उसकी एक निगाह तेरी मस्त पर पड़ जाए तो तुम भी उसी की भांति तू तू करने लगोगे और हर वक्त उस खुदा को अपने पास महसूस करोगे उस खालिद की की प्राप्ति के लिए तुम्हें बाबा फरीदुद्दीन गंज ए शकर के पीछे जाना होगा वह तुम्हें दिल्ली में बख्तियार काकी जी के पास मिलेंगे जब कुछ दिन बाद इमाम साहब को महसूस हुआ की काशिफ साहिब मस्जिद में नहीं आ रहे कुछ दिनों से तो इमाम साहब काशिफ से मिलने के लिए उनके घर गए तो उन्हें पता चला की माता जब यहां से से से वह है बार-बार यही विनती कर रहे हैं कि वह घर छोड़कर बाबा फरीदुद्दीन गंज शकर के पीछे जाना चाहता है और अपनी अब अधूरी अधूरी बंदरी को पूरी करना चाहता है तो माता इस बात से काफी उदास थी कि मेरा बेटा इतना बोला और चुपचाप रहने वाला यह तो किसी से खाना भी मांग कर नहीं लेता तो मै इतनी दूर कैसे जाने लेकिन माता और परिवार के बहुत सामान जाने जाने के बावजूद काशिफ साहिब एक दिन रात को अपने माता पिता के पैर छूकर और इस बात की गलती मान कर कि मुझे माफ कर देना मैं तुम्हें बगैर बताए जा रहा हूं दिल्ली की तरफ बाबा फरीदुद्दीन गंज ए शकर के पीछे तो बाबा फरीदुद्दीन तो अपना मुर्शीद मानकर वहां से चल दिए और रस्ते में आते आते आते काशी ऐसे स्थान है जहां पर वो रुके रुके पर वो रुके रुके जब उन्होंने जनाब दरिया पआर किया तो एक किश्ती वाला वाला जिसे मलाहा कहते हैं जब किश्ती वाला वाला किसी राहगीर को छोड़ कर वापस वापस दूसरे किनारे आने लगा तो उसकी नजर पास एक पत्थर पर पड़ी देखा कि कोई दरवेश वहां बैठा है वह पास जाकर बोला हे दरवेश क्या मैं आपकी कोई मदद कर सकता हूं तो दरवेश काशिफ साहिब ने जवाब दिया मैंने इस तरफ से दूसरे पार जाना है लेकिन मेरे पास कोई धन नहीं है