तंवर जनजाति का सामान्य परिचय

तंवर जाति सम्पूर्ण मध्य प्रदेश में अनुसूचित जन जाति घोषित हैं। यह जाति का मुख्य पुस्तेनी व्यवसाय आदिम कृषि सन ( जूट) उगाना, रेशेदार फसल उगाना व रेशे से हस्त निर्मित वस्तुओ का निर्माण , वन्य प्राणीयो का शिकार, बकरी व मुर्गी पालन, शराब बनाना व व्यसन, मजदूरी कर जीवन निर्वाह करना रहा हैं। भूमि स्वामी से जमीन खोट से लेकर सन बीज बोकर उपज प्राप्त करना होता है इस उपज (सन ) को नदी नालों के पानी में 6 या 7 दिवस तक भिगोकर रखा जाता हैं तत्पश्चात् पानी के बाहर सन पोधे से सन और संकोड़ी (रेशा और डंठल) को अलग अलग किया जाता हैं यह कार्य दो प्रकार से किया जाता हैं

  1. डांगरी सन - यह नदी/नाले/जलाशय के किनारे ही बैठकर सनकाड़ी तोड़कर सन निकाली जाती है। गीली सन को साफ करने के लिये उसे पानी में लोढ़ा जाता हैं, लोढ़ने की क्रिया की जाती हैं तत्पश्चात् उसे धूप मे सुखाया जाता हैं।
  2. गोंडी सन- यह नदी/नाले/जलाशय के किनारे ही बैठ कर सनकाडी तोडकर सन निकाल जाती हैं । काढ़ी के सूखने पर सन + काढ़ी को तोड़कर सन को अलग कर दी जाती हैं। इस प्रक्रिया मे सन को लोढ़ने से लोढ़ा और सनकाड़ी को तोड़ने से संतोडा पहचाने जाते हैं गोंडी सन की प्रकिया में सन को लोढ़ा एवं तोड़ा जाता हैं। लोढ़ा, भामटा व संतोड़ा व कहे जाने वाले ही तंवर हैं ।