Kumarmkravi
मन्नत पुरी करती हैं जरती माई (JARATI MAI | MAHARAJGANJ)
editमाता के नहीं रहने पर पुत्र की कल्पना हीं नहीं की जा सकती है़ धरती है तो जहान है़ शक्ति की पुजा सर्वत्र की जाती है़ महाराजगंज शहर के इंदौली गांव के दक्षिण-पश्चिम के कोने पर गंडकी नहर के किनारे जरती माई का स्थान है़ । जहां 12 महीने दर्शनार्थियो का भीड़ लगी रहती है । श्रद्घालु जरती माई को मन्नतों का खजाना मानते हैं़ कब और कहां से आयी मां सीवान जिले के महाराजगंज प्रखंड के इंदौली गांव के सिंदुआर परिवार के साधक झपसी सेंदुआर तंत्र-मंत्र की जानकारी के लिए 18 वीं सदी के उतरार्ध में असम के कौड़ी कामाख्या से मन्त्र सिद्घी के बाद साधक झपसी सेंदुआर जरती माई का एक पिंड 10 दशक पूर्व लाए थे़। झपसी के परिवार में लोगों की संख्या ज्यादे थी़ । तत्काल साधक ने पिंड को धर में रख था़ । घर में देवी का अनादर होने पर झपसी का पुरा परिवार का नाश हो गया़ । गांव के लोगों ने माई का पिंड गांव से बाहर अलग रखने की सलाह झपसी को दी़ । 19वीं सदी के पूर्वाद्घ में झपसी ने पिंड को गांव के बाहर जंगल में रख कर पूजा पाठ करनी शुरु कर दी़
जंगल में जिसने भी श्रद्घा से पूजा की उसकी मनोकामना पूरी होने लगी़ यह देख श्रद्घालुओं ने जंगल में एक कुंआ खुदवाया़ । उसके पानी से श्रद्घालु पूजा-पाठ करने लगे । कई अमीर सहूकारों ने माता का मंदिर बनवाना चाहा, मगर सफल नहीं हो पाए़ । माता खुले आसमान के निचे रहना पसंद करती थी़ । झपसी के मृत्यु के उपरांत विशुनपुरा गांव के हरखु दास औघड़ पंथी ने मां की पूजा पाठ की कमान संभाली थी़ ।
कब बना मंदिर 1990 में महाराजगंज के तत्कालिक एसडीपीओ अरविंद ठाकुर के मन में श्रद्घा जगी जनता के सहयोग से मंदिर निर्माण का कार्य शुरु हुआ । आज भब्य मंदिर के साथ धर्मशाला व शंकर भागवान, महावीर मंदिर आदि का निर्माण हो चुका है़ । मंदिर के कार्य का संचालन समिति द्वारा किया जाता है़ । जिसके पदेन अध्यक्ष स्थनीय एसडीओ, उपाध्यक्ष एसडीपीओ रहते हैं़। बाकी सदस्य शहर के गणमान्य लोग रहते हैं़। दूर-दराज से आते हैं श्रद्घालु रोग निवारक श्रद्घालु जरती माई के दरबार में माथा टेकने बंगाल, असाम, यूपी, मध्यप्रदेश, राजस्थन, नेपाल आदि के अलावा बिहार के कोने-कोने से आते है. माता के यहां मन्नतें पूरी होती है़ । बिशेष कर माता के दरबार में दशहरा में शुक्रवार व सोमवार के दिन भीड़ उमड़ती है़ । जरती माई संचालन समिति श्रद्घालुओं द्वारा दान किए गऐ पैसे, गहने आदि को एकठ्ठा कर मां के दरबार में धर्मशाला आदि का निर्माण व मंदिर का रंग -रोगन कराते हैं। मंदिर का प्रांगण भब्य तरिके से सजाया रहता है़। दशहरा में श्रद्घालुओं की इतनी भीड़ होती है , कि मंदिर के आस-पास का वातावरण जय मां की जयघोष से गुंजयमान रहता है़ । श्रद्घालु अष्टयाम् कीर्तन कराते रहते हैं। सुरक्षा की रहती है, व्यवस्था समिति के तरफ से तो नौजवानों की टीम सुरक्षा में रहती है । अलावे इसके स्थानीय प्रशान की भी चौकसी सराहनीय रहती है़ । दूर दराज के दर्शनार्थियों के लिए ठहरने की पुख्ता व्यवस्था समिति के तरफ से रहती है़
- Souce By:- M.K.Ravi
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