गांडा जाती और बाजा

1/गांडा जाती और गांडा का उत्पति और क्रम विकाश:-

गांडा जाती उत्पत्ति इतिहास अनेक हैं। जो की वर्तमान में कहानी के रूप में प्रस्तुत की जाती है। कहानी की चर्चा बाद में करेंगे सर्वप्रथम यह जानना जरूरी है कि "गांडा" शब्द आया कहां से है ? "गांडा" शब्द "बाजा" से आया है। "गांडा जाती" इसी बाजा का देन है। सृष्टि के आरम्भ से ही बाद्य यंत्र का प्रचलन है। शून्य पृथ्वी में जल,हवा,अंधकार के अलावा कुछ नहीं था परन्तु ध्वनि था वहीं ध्वनि को "शब्दब्रह्म" भी हिन्दू शास्त्रों में कहा गया है। ध्वनि से ही "शब्द"का निर्माण और "शब्द" से भाषा बोली बना है।भाषा बोली से ही संगीत का प्राकट्य हुआ। संगीत में बाजा का स्थान सर्वोच्च है, बाजा बिना संगीत अधूरा है। पृथ्वी में जो शब्द या गूंज व ध्वनि सुनाई दिया वही आवाज ही "ताल"है। सुर लय ताल बाद्य से संगीत को पुर्णं रूप माना जाता है। वही शब्द, ध्वनि,या आवाज एक लय से जब तरंगीत हुआ,वही ताल बना। मनुष्य जाति का पृथ्वी में आने के बाद हर्ष, उलास आंनद नाचने के लिऐ बाजा बनाया। पहले वो अपने शरीर के अंगों से ध्वनि निकलता था। जैसे मुं, नाक, हाथ, पैर से विभिन्न पशु पक्षी का आवाज निकलता था यहां तक की पेड़पौधे और अनेक धातु से आवाज निकालता था।धीरे धीरे समय का परिवर्तन के साथ बाजा का निर्माण हुआ,जो कि गाय चमड़े से बना था।

शास्त्रीय मान्यता है कि महादेव जी के डमरू से बाद्य यंत्र का निर्माण हुआ। महादेव जी के डमरू से ही आज का बाजा (वाद्ययंत्रों) निर्माण हुआ है। सृष्टि के आरंभ से ही "बाजा"(वाद्य) का आरंभ हो गया था (वाद्य का अर्थ शब्द है) जो कि नगाड़ा, निशान, मोहरी, ताशा, टिमकिडि का उन्नति रूप हुआ। जिसे परवर्तीत समय में पंचवाद्य कहा गया। यह बाद्य को बजाने वालों को "गैंडा जाती" कहा गया कारण यह था कि इस बाजा (वाद्य) को बजाने वाले व्यक्ती शक्तिशाली बलवान धीरबुद्धि और बुद्धिमान थे। जैसे एक पशु होता है उसका नाम है "गेंडा" ओड़िया भाषा में "गंडा" कहा जाता है। गेंडा जैसे शक्तिशाली बलवान होने के कारण से जाती को "गंडा जाती"कहा गया। गेंडा शब्द अपभ्रंश होकर "गंडा" बना। जिसे वर्तमान हिंदी में और बहोत सारे भाषा में गांडाजाती कहाजाता है। जो कि अपभ्रंश होकर "गांडा" शब्द निर्माण हुआ। जो समाज इस वाद्य को बजाता था उसे "गैंडा जाती", (गंडाजाती)"गांडा जाति" कहा गया। एक लोकबात ऐसा भी कहा कहा गया है- जो बाजा बना था वह बाजा गेंडा के चमड़ा से बना था इसलिए यह "गेंडा बाजा"कहलाता था। अपभ्रंश हो कर (गंडाबाजा)"गांडा बाजा" और "गांडा जाती" में परिवर्तित हुआ।

"गांडा जाती" कोई जाती नहीं बल्कि एक समुदाय व गोष्ठी है जो कि बाजा के नाम से जाती का (उपाधि) नाम पाया है। इसलिए अनेक लोग इस जाती को उपाधि के साथ तुलना करते हैं।अनेकानेक किस्से कहानी इतिहास कला संस्कृति प्रथा परम्परा से पता चलता है कि गांडा जाती एक प्राचीन जाती है। यह जाती आदि काल से चलता आ रहा है। गंडा जाती आदिजाती है, मूलजाती है, प्राकृतिक जाती है, महान जाती है। गांडा जाती के वाद्य को गांडा बाजा कहा गया। बाजा से जाती उत्पन्न हुआ। जाती से बाजा उत्पन्न हुआ। जिससे उत्पन्न हुआ वही जन्म दाता है, परन्तु जन्म दाता ही बेटा बना। अर्थात बाजा से जाती बना परन्तु वही जाती ने बाजा का परिचय विश्व में फैलाया। गांडा जाती का परिचय बाजा से मिलता है। बाजा ही गांडाजाती का महत्वपूर्ण परिचय देता है क्योंकि बाजा कोई वस्तु नहीं संकृती है। गांडा बाजा कोई वस्तु नहीं, गांडा जाती कोई जाती नहीं बल्कि संस्कृति है। जो कि दुनिया के हर समाज के संस्कृति को बचाए रखने का काम करता है। प्रत्येक समाज के कला संस्कृति को बचाने का काम गांडाबाजा,गांडाजाती करता है।गांडाबाजा समाज को जोड़ने का काम करता है। इसलिए गांडाजाती शांति अमन चैन शुकून हर्ष उल्लास को बरकरार रखते वाला जाती है। दया प्रेम स्नेह शीलता धीरज बुद्धि ज्ञानी जाती है।गांडा जाती समाज में परस्पर संपर्क को सुदृढ़ करने का काम करता है। वाद्ययंत्र से देवशक्ति को प्रसन्न कर आशीर्वाद प्राप्त करता है। देवशक्ति इस वाद्य से प्रसन्न आनंदित होते हैं और कृपा बरसाते हैं। आदि काल से प्रचलित होने के कारण इस वाद्य को आदिबाजा,प्राचीनबाजा,प्राकृतिबाजा,मूलबाजा, सृष्टिबाजा,प्रारम्भबाजा,आरंभबाजा,गांडाबाजा,घन बाजा,सिंहबाजा,वीरबाजा,मोहरीबाजा,गंधर्वबाजा, देवबाजा,संस्कृतिबाजा,दुदुंभीबाजा,शक्तिबाजा,पंचबाजा (पंचवाद्य) अनंतबाजा कहा जाता है।

उपरोक्त सारे दावों को निम्न में आलोचना किया जाएगा। इन सारे दावों को कुछ कहानी और किस्सों के माध्यम से समझाने की कोशिश की जाएगी। इस जाती की उत्पति का स्पष्टीकारण कुछ तथ्यों इतिहास के द्वारा समझाने की कोशिश कि जाएगी। अनेक मान्यता और कुछ इतिहास से प्रमाणित विषय को रखने की कोशिश होगी। गांडा जाती आती प्राचीन जाती है,जो कि कभी अपने आपका ज्ञान और कला को जताने की कोशिश नहीं किया है । इसलिए आज दुनिया में इस जाती का अस्तित्व बहुत निम्न स्तर का माना जाता है,परन्तु ये सत्य नहीं है। गांडा जाती एक श्रेष्ठ जाती है,जो की अपने सरलता विनम्रता के कारण प्रत्येक व्यक्ती को अपना माना,प्रेम दया उदारता मनोभाव से सबसे अच्छा व्यवहार किया। परन्तु लोगों ने यही सरलता भाव को इसकी कोमजोर समझ लिया। इस जाती के उदारभाव को लोगों ने कमजोरी और अछूत हिनमान दास मानकर गांडाजाती को तिरस्कार करना आरम्भ कर दिए। धीरे धीरे इस जाती को तिरस्कृत अवहेलित माना जाने लगा और आज गांडाजाती तिरस्कृत हो रहा है। बाजा का संस्कृति ही है गांडाजाती का परिचय। बाजा ही इस जाती का परिचय है। अर्थात बाजा ने ही इस जाती को उत्पन्न किया इसनाते बाजा इस जाती का मा और बाप है। बाजा इस जाती का जन्मदाता है। इन सारे दावों को हम कुछ उदाहरण और सबूत के तहत जानने की कोशिश करेंगे। बाजा एक संस्कृति है,इस बात को हम कुछ उदाहरण से जान पाएंगे।