प्रकृति देवी और देवता

(क)पांच प्रकृति ही गांडा का देवी और देवता है:-

जल वायु अग्नि पृथ्वी आकाश ये प्रकृति शक्ति हैं।प्रकृति शक्ति अन्न जल वायु अग्नि फल फूल धन धान प्राकृतिक सम्पदा देता है, इसलिए ये देवता है। पृथ्वी देती है इसलिए देवी है। जो हमे देता है उसे हम देवी और देवता कहते हैं। पृथ्वी हमे हर चीज़ दिया है इसलिए वो हमारी माता है। जल- शीतलता ,चंद्रदेव, वरुणदेव जल देव(जीवन) वायु- तेज़, गतिमान, वायू देव, यम देव,पवन देव(स्वांस) अग्नि-प्रखर, तेज़ सूर्य देव,ज्वाला देव, अग्नि देव( रक्त) आकाश- अंनतदेव, विराटदेव, निराकारदेव(शरीर,पुरुष) पृथ्वी- पृथ्वी देवी, बन देवी,सृजन शक्ति, जन्म दात्रि, (नारी, ज़मीन)

(ख)यही पंच प्रकृति से सारा संसार बना है। इसलिए प्रकृति हमारा देवी और देवता है। आदि देव, अनादि देव, मूल देव बड़ा देव, महान देव, महा देव, दुल्हा देव सत्य देव, शब्द देव,

(ग)प्रकृति को ही देवी और देवता माना जाता है। निर्गुण निराकार-प्रकृति की कोई छवि नहीं है इसलिए प्रकृति शक्ति निराकार है। अलेख है। अनंत, विशाल, अस्पष्ट, अदृश्य है सिर्फ अनुभव ही किया जा सकता है। सगुण साकार-निर्गुण निराकार है परन्तु सगुण साकार भी है। मनुष्य जब प्रकृति को चित्र में देखना चाहता है तब वो उसे रूप देता है जिससे निराकर भी साकार रूप ले लेता है। जल, वायू, अग्नि, पृथ्वि,आकाश, बन, सूर्य, चन्द्र, यम, इन सबका स्वरूप बनाता है। और पुजा करता है। ये तो भाव की बात है। बड़ा देव महान देव महादेव का चित्र बनाता है। मनुष्य जब प्रकृति को रूप देता है वही शरीर धारी देवी और देवता कहलाते है। और लोग स्पष्ट हो जाते हैं। की ये हमारा देवी और देवता है। किन्तु प्रकृति में देवी देवताओं का शरीर हम सबने बनाया है। उनका रूप रंग नहीं है। अनाम,आलेख, अरूप, अनंत निर्गुण निराकर हैं। इसलिए हम प्रकृति के पुजारी हैं। हम आदिवासी अनादि बासी मूलनिवासी हैं। जय बड़ा देव, जय महा देव, जय प्रकृति देव, जय आदी देव, जय गांडा देव, जय पृथ्वी देवी,

(घ)प्रकृति हमारी देवी देवता क्यों और कैसे:-

आकाश- पुरुष (शरीर) है। जल वायु अग्नि बिज हैं। पृथ्वी- नारी (जमीन, गर्भ) है प्रकृति और पुरूष के मिलन से श्रृष्टि का सृजन होता है। आकाश और पृथ्वी का मिलन जनम जनम का है। प्रकृति पुरूष आकाश है। प्रकृति पृथ्वी नारी है। पृथ्वी से सारी सृष्टि का श्रृंगार निर्माण और सृजन होता है। मनुष्य शरीर पंच प्रकृति से बना है जल वायु अग्नि पृथ्वी आकाश। गांडा समाज का देवी देवता गांडा समाज का देवी और देवता पंच प्रकृति हैं। परन्तु हमारे पूर्वज ने इनको कुछ सांकेतिक नाम से पूजा किया करते थे जैसे:- बड़ादेव, महादेव, दुल्हा देव, पृथ्वी देवी।

गण शब्दार्थ:-

गण शब्द से गांडा जाती निर्माण हुआ है। गण अर्थ समूह, गोष्ठी,व्यक्ती, लोग है। गण का देवता बड़ा देव, आदि देव, महा देव है। जिसे गन्ड देव कहा जाता था। गण का अर्थ महान और बड़ा भी होता है। जिसे गणनायक भी लोग कहते हैं। गण शब्द से गणा, गन्ड से गंडा शब्द आया। जिसे ओड़िया में( ଗଣ୍ଡା) कहते हैं।

लोक उक्ति:-

गण देवता ने इस जाती को डमरू दिया था जिसको बजाते ही प्रकृति में हल चल मचने लगा और निराकर शक्ति साकार शारीर में उपस्थित हो गए। 33 कोटि देवी देवता प्रसन्न हो गए। सारी प्रकृति शारीर धारण कर लिया और प्रकट हो गई और ता ता थईया नाचने लगी। डमरु बजाते ही पृथ्वी सृंगार और सृजन करने लगी। दमरुधारी तो आधुनिक युग में महादेव को ही कहा जाता है। महादेव दलितों का देवता हैं।गण देव, लोक देव, बड़ा देव, महादेव हैं। तबसे हमारी जाती डमरु बजाते आरहा था जो पंच वाद्य में परिवर्तित हुआ। इसलिए महादेव गंड़ देव गांडा देव हैं। उनका रूप रंग आदत आचरण भी पूरा देशी है। इसलिए महादेव ही बड़ा देव है। जिसके डमरु से सारी सृष्टि नाचने लगी वो सबसे बडा है इसलिए महादेव बड़ा देव है। आकाश भी अनंत है अर्थात बड़ा है इसलिए ये भी बड़ा देव है। बड़ा को महा, महान भी कहा कहा जाता है। इसलिए महान देव महादेव। देवों के देव महादेव। सबसे बड़े होने के कारण आदिदेव सत्यदेव महादेव बड़ा देव है। अनेक किस्से कहनी और इतिहास इसका प्रमाण देती है। पृथ्वी देवी हमारी मां है। जननी है। जिसे अनेक नाम से पूजा किया जाता है।

इतिहास:-

इतिहास के प्रत्येक पन्ने में आदिवासी मूलनिवासी के बारे में बड़ी सुन्दर बात लिखी गई हैं कि प्राचीन आदिम सभ्यता जाती जनजाती में केवल पशुपति को पूजा किया जाता था। जो कि महादेव ही हैं जो की बैल सवारी करने हैं। सारे पशु पक्षी महादेव के इर्द गिर्द लपेट कर रहते हैं। पृथ्वी इतिहास के हर पन्ने में प्रत्येक आदिवासी मूलनिवासी जाती जनजाति के बारे में केवल प्रकृति पूजा की ही बात कही गई है। मिश्र इतिहास में RAW को पूजा करते हैं जिसे हम सूर्यदेव कहते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता में ये प्रमाणित हो चुका है। पृथ्वी पूजा को भी सिंधु घाटी सभ्यता में बताया गया है। इसलिए प्रकृति देवि पृथ्वी देवी हमारी देवी है। सिंधु घाटी सभ्यता में हम लोगों की अनेक प्रमाण मिलते हैं। कहा जाता है कि हिंदू शब्द सिंधु शब्द से आया है। इसलिए ये भी कहा जा सकता है कि जितना भी हिंदु धर्म में शास्त्र हैं सब सिंधु घाटी सभ्यता से आया है अर्थात हम लोगों की संस्कृति को उन्होंने पुराणों में अपने हिसाब से बिरचित किए हैं। सिंधु घाटी सभ्यता के पहले कोई धर्म नहीं था इस जम्बूद्वीप में, इसका मतलब यह है कि सिंधु से हिंदु और अपना संस्कृति खो गया।

सारांश:-

इसलिए हमारा मूल देवता पशुपति नाथ महादेव हैं। जिसको वर्तमान में अनेक नाम से पूजा किया जाता है। इनको पुराण शास्त्रों में अनेक रूप में प्रस्तुत किया गया है। पुराण शास्त्रों में महादेव के बारे में लिखी गई बात शत प्रतिशत सच है या नहीं? ये बात वही जानें। परन्तु हमारा महादेव अलग है जो कि हमारा है। दलितों का है। गांडा जाती का है। पृथ्वी हमारी जन्म दात्री है।

हमारा देवता महादेव:-

(हिन्दू देवता नही हैं) गांडा समाज में द डूमा को पूजा किया जाता है। डूमा का अर्थ है आत्मा, पूर्वज,। मनुष्य की मनुष्य मृत्यू के बाद उसे श्मशान में लिया जाता है है और श्मशानपति के कैलाश पति है। कई- अनगिनित+ लाश- मरा शरीर=हजारों लाश के पास रहने वाले देवता कैलाशपति महादेव। श्मशान में ही मरा हुआ शरीर को पोता जाता है। श्मशान से ही वो मरा शरीर आत्मा , डूमा बन जाता है। डूमा शब्द डमरु से आया है। डमरु से डम शब्द भी आया है। डूमादेव, आत्मादेव, महादेव, पूर्व पुरूष, डूमा हमारा देवता है। इन सारे डूमाओं का राजा महाराजा, आदि देव,बड़ा देव,महादेव,। यहां डूमा का अर्थ गण भी है। इसलिए महादेव गण देव डूमा देव हैं। बड़ा देव को गन्ड समाज में बूढ़ा देव लिंगों देव कहते हैं।

हमारी देवी पृथ्वी माता:-

(आदी शक्ति, परा शक्ति, महा शक्ति, देवी शक्ति) जिसे लोग अनेक नामसे पूजा करते हैं। सती, पार्वती, दुर्गा,(डाल खाई देवी)(समलेई)(कर्मा सानी) कली, ये सारे नाम जानने के लिए है परन्तु हम पृथ्वी देवी को आद्य शक्ति के रूप में पूजा करते हैं। ये सारे नाम अपभ्रंश होकर आया है।

  • धर्म=गांडा बाजा (सेवा), प्रकृति।
  • कर्म = बाजा (सेवा) पुजा । कपड़ा बुनना, व्यापारी, पहलवानी, सैनिक, चौकीदारी, कोतवाली, गुप्तचर,सेनापति, संदेश बाहक, कलाकार, गायक
  • संस्कृति= गांडा बाजा है। संगीत, वाद्य

ध्वजा=प्रकृतिदेव सतरंगी गांडा बाजा

  • देवी=पृथ्वी (प्रकृति) आदि शक्ति गौरी माई।

देवता=डूमा देव, आत्मा देव, गौरामहादेव,(बड़ा देव)


     प्रकृति से वेद की उत्पत्ति

प्रकृति शक्ति से देवी देवता का निर्माण हुआ है। वेद चार प्रकार के होते हैं और चोरो वेद में केवल प्रकृति देव शक्तियों का वर्णन किया गया है जैसे:- जल वायु अग्नि पृथ्वी आकाश सूर्य चन्द्र यमराज का वर्णन है। इससे साफ जाहिर है कि वेद में दृश्य मान सारे देवी देवता हमारे हैं परन्तु जब पुराणों का रचना हुआ तब यह सब परिवर्तन होने लगा। Max Muller की theory है वेद 1800 BC में लिखा गया था। आदि वैदिक युग और ऋग्वैदिक युग में लोग प्रकृति के पुजारी थे। जिसे हम आदि देव बड़ा देव महान देव महादेव कहते हैं उसे बाद में पुराणों में अलग नाम से परिचय दिया गया। मानव सभ्यता के विकास के साथ साथ प्रकृति निराकार ब्रह्म को साकार रूप दिया गया। जिसे परिवर्तित समय के साथ नाम रूप रंग गुण बदलने लगे। आप वेद में केवल प्रकृति देवी देवताओं को ही वर्णन किया हुआ देख पाएंगे अर्थात वेद में जो भी देवी देवता को स्थान दिया गया है वे सब हमारे देवी देवता हैं। आदिवासी मूलनिवासी जिस प्रकृति को माता मानते थे वही आज सभ्य भाषा में पृथ्वी देवी के नाम से पुजी जाती है।(जल वायु अग्नि पृथ्वी आकाश सूर्य चन्द्र यम राज ) ये सारे देवी देवता हमारा है।

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